प्रताड़ित, अपमानित या घर से बेदखल करने की धमकियों से पीड़ित महिलाएं
अपनी नजदीकी महिला संगठनों से मदद प्राप्त कर सकती हैं. लेकिन इसी तरह की
प्रताड़ना से पीड़ित पुरुष आखिर क्या करें. महिलाओं अपनी गरिमा एवं गौरव
पर किए गए हमले का मुकाबला करने के लिए प्रताड़ित पुरुष अब एकजुट होकर अपने
लिए समान अधिकारों की मांग को लेकर आवाज बुलंद कर रहे हैं.
पुरुष अधिकार संघ (एमआरए) के अध्यक्ष अतीत राजपाड़ा ने कहा, ‘भारतीय न्यायपालिका घरेलू हिंसा अधीनियम (2005) के तहत प्रत्येक विवाहित महिला को पति के र्दुव्यवहार से सुरक्षा प्रदान करती है. लेकिन हर बार सिर्फ महिलाएं ही ऐसी प्रताड़ना की शिकार नहीं होती हैं. यह कानून ऐसी ही प्रताड़ना के शिकार पुरुषों की रक्षा करने में असफल है.’
राजपाड़ा ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक आठ मिनट पर एक पुरुष वैवाहिक या आर्थिक दबाव की वजह से आत्महत्या कर लेता है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस समाज में पुरुषों का पालन पोषण इस तरह से हुआ है जहां वे किसी से मदद नहीं मांग सकते, न शिकायत कर सकते हैं और न ही अपनी कमजोरी दिखा सकते हैं.
उन्होंने कहा कि उनके एनजीओ में नए घरेलू हिंसा कानून से पीड़ित पुरुषों के प्रतिदिन आठ से नौ फोन आते हैं.
राजपाड़ा ने ऐसे एक मामले का जिक्र करते हुए बताया कि दिल्ली के रहने वाले एक प्राथमिक शिक्षक सुनील (बदला हुआ नाम) को अपनी शादी के चार वर्ष बाद अपने ही स्कूल में पढ़ाने वाली एक शिक्षिका के साथ प्रेम हो गया और दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध भी रहा. वह शिक्षिका विवाहित थी और जब उसके पति को इस प्रेम प्रसंग का पता चला, तो वह इससे मुकर गई और सुनील पर बलात्कार करने का आरोप लगा दिया. इसके चलते उसे 218 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. अब वह जमानत पर रिहा है और इस मामले में अदालती लड़ाई लड़ रहा है.
एमआरए के महासचिव स्वरूप सरकार कहते हैं, ‘हम बस इस तरह के मामलों की निष्पक्ष सुनवाई चाहते हैं, जिसमें सिर्फ पुरुषों को ही दोषी नहीं घोषित किया जाए. इसके साथ ही अगर कोई महिला भी इसमें दोषी पाई जाए तो उसे भी पुरुष के समान ही सजा दी जाए.’
पुरुष अधिकार संघ (एमआरए) के अध्यक्ष अतीत राजपाड़ा ने कहा, ‘भारतीय न्यायपालिका घरेलू हिंसा अधीनियम (2005) के तहत प्रत्येक विवाहित महिला को पति के र्दुव्यवहार से सुरक्षा प्रदान करती है. लेकिन हर बार सिर्फ महिलाएं ही ऐसी प्रताड़ना की शिकार नहीं होती हैं. यह कानून ऐसी ही प्रताड़ना के शिकार पुरुषों की रक्षा करने में असफल है.’
राजपाड़ा ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक आठ मिनट पर एक पुरुष वैवाहिक या आर्थिक दबाव की वजह से आत्महत्या कर लेता है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस समाज में पुरुषों का पालन पोषण इस तरह से हुआ है जहां वे किसी से मदद नहीं मांग सकते, न शिकायत कर सकते हैं और न ही अपनी कमजोरी दिखा सकते हैं.
उन्होंने कहा कि उनके एनजीओ में नए घरेलू हिंसा कानून से पीड़ित पुरुषों के प्रतिदिन आठ से नौ फोन आते हैं.
राजपाड़ा ने ऐसे एक मामले का जिक्र करते हुए बताया कि दिल्ली के रहने वाले एक प्राथमिक शिक्षक सुनील (बदला हुआ नाम) को अपनी शादी के चार वर्ष बाद अपने ही स्कूल में पढ़ाने वाली एक शिक्षिका के साथ प्रेम हो गया और दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध भी रहा. वह शिक्षिका विवाहित थी और जब उसके पति को इस प्रेम प्रसंग का पता चला, तो वह इससे मुकर गई और सुनील पर बलात्कार करने का आरोप लगा दिया. इसके चलते उसे 218 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. अब वह जमानत पर रिहा है और इस मामले में अदालती लड़ाई लड़ रहा है.
एमआरए के महासचिव स्वरूप सरकार कहते हैं, ‘हम बस इस तरह के मामलों की निष्पक्ष सुनवाई चाहते हैं, जिसमें सिर्फ पुरुषों को ही दोषी नहीं घोषित किया जाए. इसके साथ ही अगर कोई महिला भी इसमें दोषी पाई जाए तो उसे भी पुरुष के समान ही सजा दी जाए.’
http://aajtak.intoday.in/story/women-harassed-men-should-get-right-1-732395.html
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