Latest news

Monday, 17 June 2013

'दूसरी शादी के बाद भी पहली बीवी-बच्चों का खर्च उठाएगा पति'

'दूसरी शादी के बाद भी पहली बीवी-बच्चों का खर्च उठाएगा पति'

नई दिल्ली,(पवन कुमार)। भले ही किसी व्यक्ति ने तलाक के बाद दूसरा विवाह कर लिया हो और वह अपनी बीवी व बच्चों का लालन-पालन कर रहा हो। मगर, उसे पहली बीवी और उससे पैदा बच्चों का खर्च भी उठाना ही होगा। यह टिप्पणी करते हुए अपना फैसला तीसहजारी कोर्ट की अतिरिक्त जिला जज सुजाता कोहली ने 13 वर्ष पूर्व तलाक लेने वाली गीता (परिवर्तित नाम) द्वारा दायर याचिका पर सुनाया है।
अदालत ने राजन (परिवर्तित नाम) को निर्देश दिया कि वह अपनी पहली पत्नी गीता व बेटे को दस हजार रुपये प्रतिमाह गुजारे भत्ते के तौर पर देगा और उन्हें 11 हजार रुपये इस केस के खर्चे के रूप में भी देगा। अदालत ने फैसले में कहा कि यह बात ठीक है कि राजन अपनी दूसरी पत्नी व बच्ची को पाल रहा है। लेकिन ऐसे में वह अपनी पहली पत्नी गीता व बच्चे की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
अदालत ने कहा कि यह भी ठीक है कि उसका बेटा जिस स्कूल में पढ़ रहा है, उसकी शिक्षा मुफ्त है, लेकिन इसके अलावा बच्चे के खाने-पीने व कपड़ों आदि पर भी खर्च होता है। वहीं,उसकी पूर्व पत्नी गीता भी खुद कुछ नहीं कमा रही है। ऐसे में राजन अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता। उसे दोनों को पालन-पोषण के लिए गुजारा भत्ता देना ही होगा।
उल्लेखनीय है कि पति से तलाक के 13 साल बाद गीता ने अपने पूर्व पति राजन से गुजारा भत्ता पाने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। गीता का कहना था कि उसका वर्ष 2000 में पति से तलाक हो गया था। उसका एक 13 साल का बेटा है। उसका व उसके बेटे का खर्च उसके माता-पिता उठा रहे हैं।
उसके तलाकशुदा पति राजन का ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय है और किराए से अन्य आय भी होती है। इसलिए उसे 25 हजार रुपए प्रतिमाह गुजारे भत्ते के तौर पर व 33 हजार रुपये मुकदमे के खर्च के तौर पर दिए जाएं। वहीं, इस मामले में राजन का कहना था कि वह करीब 13 साल से अपनी पत्नी से नहीं मिला है। उन्होंने आम सहमति से तलाक ले लिया था। इतने साल तक उसने गुजारा भत्ता नहीं मांगा और अब मांग रही है। उसकी दूसरी शादी हो चुकी है और एक बेटी है, जिसका खर्च वह वहन कर रहा है।

 http://www.jagran.com/news/national-husband-will-bear-ex-wife-and-childrens-expenses-court-10485549.html

बुजुर्गो पर अत्याचार के लिए बहुएं सबसे ज्यादा जिम्मेदार

बुजुर्गो पर अत्याचार के लिए बहुएं सबसे ज्यादा जिम्मेदार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कहने को तो हमारे देश में बुजुर्गो की बड़ी इज्जत है, मगर हकीकत यह है कि वे घर की चारदीवारियों के अंदर भी बेहद असुरक्षित हैं। 23 फीसदी मामलों में उन्हें अपने परिजनों के अत्याचार का शिकार होना पड़ रहा है। आठ फीसदी तो ऐसे हैं, जिन्हें परिवार वालों की पिटाई का रोज शिकार होना पड़ता है।
बुजुर्गो पर अत्याचार के लिहाज से देश के 24 शहरों में तमिलनाडु का मदुरई सबसे ऊपर पाया गया है, जबकि उत्तर प्रदेश का कानपुर दूसरे नंबर पर है। गैर सरकारी संगठन हेल्प एज इंडिया की ओर से कराए गए इस अध्ययन में 23 फीसदी बुजुर्गो को अत्याचार का शिकार पाया गया। सबसे ज्यादा मामलों में बुजुगरें को उनकी बहू सताती है। 39 फीसद मामलों में बुजुर्गो ने अपनी बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना है।
बूढ़े मां-बाप पर अत्याचार के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं। 38 फीसदी मामलों में उन्हें दोषी पाया गया। मदुरई में 63 फीसदी और कानपुर के 60 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार का शिकार हो रहे हैं। अत्याचार का शिकार होने वालों में से 79 फीसदी के मुताबिक, उन्हें लगातार अपमानित किया जाता है। 76 फीसदी को अक्सर बिना बात के गालियां सुनने को मिलती हैं।
69 फीसदी की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता। यहां तक कि 39 फीसदी बुजुर्ग पिटाई का शिकार होते हैं। अत्याचार का शिकार होने वाले बुजुर्गो में 35 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें लगभग रोजाना परिजनों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है। हेल्प एज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू चेरियन कहते हैं कि इसके लिए बचपन से ही बुजुर्गो के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। साथ ही बुजुर्गो को आर्थिक रूप से सबल बनाने के विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा।

http://www.jagran.com/news/national-help-age-india-report-says-23-percent-of-indian-elders-face-abuse-10480408.html?src=gg_home

A day of quiet longing for these fathers

A day of quiet longing for these fathers

Partha Bhadra, a small-time businessman, rang in his son’s third birthday on Sunday with a cake topped with three candles and a handful of fellow fathers for company. But the ones conspicuously missing from the quiet celebrations were his son and wife.
A deep sense of longing is what typified Bhadra, a divorced husband, and his kind from across the city and suburbs, as they observed Father’s Day with him on a lazy Sunday afternoon.“I have not seen my son since I separated from my wife more than a year back. It’s his third birthday today and I dearly wished to see him, even from a distance. But my wife would have none of it and reminded me of our date in court instead,” Bhadra said with misty eyes, as he held up a photograph of his son Batan in one hand and a piece of cake on the other.
The trader, along with ten fellow divorced husbands, is a member of Hridaya, an NGO striving to restore men’s rights and uphold family values. While ruing their fate, Bhadra and his fellows at Hridaya called for wider implementation of the shared parenting concept, so the likes of them don’t have to spend their days longing for their sons and daughters.
“I toured the city all day with a tableau of our NGO to raise awareness about the plight of divorced or estranged fathers and send across the message that fathers too have the same rights as mothers when it comes to taking care of their children. I wouldn’t even wish my fate on my worst enemy,” Bhadra said.
Amit Gupta, an estranged husband and the secretary of the NGO, sought to highlight how rampant misuse of Section 498 A of the IPC (pertaining to excesses by husbands over dowry) has had an adverse impact on the lives of children. “Studies all over the world have shown that children of divorced or estranged couples are five times more inclined to commit suicide and 20 times more likely to turn to crime,” Gupta said.
Moulinath Ghosh, a share broker and a member of the NGO, has endured an agonising wait for his son’s company since 2010. “My wife doesn’t allow me to go near my son, fearing I might cause him harm. I am not even sure if my son uses the name I gave him— Soumalya,” said Ghosh, showing a picture of his son that unbeknownst to his wife, he took with his mobile phone.
“We demand equal access to children for both parents after divorce, as fathers too have an important role in their lives. The custody cases too shouldn’t drag on for years and should be settled at the earliest in the interest of the children,” Gupta said.

http://www.hindustantimes.com/India-news/Kolkata/A-day-of-quiet-longing-for-these-fathers/Article1-1077560.aspx

महिलाओं के और अधिक अनुकूल बनेगा विवाह कानून

महिलाओं के और अधिक अनुकूल बनेगा विवाह कानून  

विवाह कानूनों को महिलाओं के और अधिक अनुकूल बनाने के उद्देश्य से मंत्रियों का एक समूह जल्द ही इस बात का फैसला करेगा कि उन मामलों में जहां शादी को बचा पाना असंभव हो गया हो, क्या उनमें तलाक के मामले में अदालत पति की पैतृक संपत्ति से महिला के लिए पर्याप्त मुआवजा तय कर सकती है.
मंत्रियों का समूह हाल ही में विवाह कानून (संशोधन) विधेयक पर फैसला करने के लिए गठित किया गया था. मंत्री समूह यह भी तय करेगा कि अगर आपसी सहमति से तलाक के लिए पति-पत्नी में से कोई एक व्यक्ति अगर दूसरा ‘संयुक्त आवेदन’ दाखिल न करे, तो क्या कोर्ट तलाक देने में अपने विवेक का उपयोग कर सकता है.
दूसरी ओर, सरकार के भीतर ही इस प्रस्ताव को लेकर विरोधाभासी विचार हैं. सूत्रों ने बताया कि एक वर्ग की राय में, अगर अदालत को विवेक का उपयोग करने का अधिकार दे दिया जाए तो आपसी सहमति से तलाक का उद्देश्य पूरा नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि अगर पति-पत्नी में से कोई भी एक व्यक्ति अगर संयुक्त आवेदन देने से इनकार करता है, तो दूसरे को आपसी सहमति के बजाय अन्य आधार पर तलाक के लिए आवेदन देने की अनुमति दी जानी चाहिए.
विधेयक में पति द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में से पत्नी को हिस्सा देने का प्रावधान है. रक्षा मंत्री एके एंटनी की अगुवाई में गठित मंत्रिसमूह एक नए उपबंध 13एफ पर चर्चा कर रहा है.
इस नए प्रावधान में कहा गया है कि अगर पैतृक संपत्ति बांटी नहीं जा सकती, तो इसमें पति के हिस्से का आकलन कर पत्नी को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए. मुआवजे की राशि वह अदालत तय कर सकती है, जहां तलाक के मामले की सुनवाई हो. पिछले सप्ताह संपन्न पहली बैठक में मंत्रिसमूह ने आपसी सहमति से तलाक की खातिर संयुक्त आवेदन देने के इच्छुक दंपति के लिए छह माह तक इंतजार करने की अनिवार्यता नहीं रखने पर फैसले का जिम्मा अदालत को देने के मुद्दे पर भी चर्चा की.
सूत्रों ने बताया कि इस मुद्दे पर आम सहमति है क्योंकि इससे तलाक की प्रक्रिया में तेजी आएगी. इंतजार की अवधि पहले ही छह माह से 18 माह रखी गई है और मंत्रिसमूह अब इस पर विचार करेगा कि क्या न्यायाधीश इस अवधि को छह माह से कम कर सकता है. इस प्रावधान के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया जा रहा है.
विधेयक में तलाक के बाद पति की संपत्ति में पत्नी के अधिकार संबंधी उपबंध को लेकर पिछले माह केंद्रीय मंत्रिमंडल में मतभेद उभर आए थे और यह मामला मंत्रिसमूह को सौंपना पड़ा.
विधेयक को राज्यसभा में पेश करने के बाद अलग-अलग बदलावों के साथ तीन बार मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जा चुका है. विधेयक अब भी राज्यसभा में लंबित है.
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 तथा विशेष विवाह अधिनियम 1954 में बदलाव की मांग करने वाले संशोधन विधेयक में ‘शादी को बचाना संभव नहीं’ होने के आधार पर तलाक का विकल्प पेश किया गया है.

http://aajtak.intoday.in/story/marriage-bill-gom-to-decide-on-sufficient-compensation-for-women-1-733629.html

जबरन दूसरी जगह करा दी पत्नी की शादी?

जबरन दूसरी जगह करा दी पत्नी की शादी?

नई दिल्ली।। एक महिला ने अपने पति और सास-ससुर पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उसकी जबरन दूसरी शादी कराई है। महिला ने मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में यह भी आरोप लगाया कि आरोपियों ने पैसे लेकर जबरन दूसरी शादी कराई। महिला के पति ने इस मामले में हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल कर कहा है कि वह निर्दोष है, लिहाजा उसे जमानत दी जाए। हाई कोर्ट ने कोई प्रोटेक्शन देने से इनकार करते हुए पुलिस से डिटेल स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 21 जून की तारीख तय की है।

महिला के पति ने अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल कर कहा है कि उसकी पत्नी ने तलाक लिए बगैर खुद ही दूसरी शादी की है और शादी के विडियोग्राफ आदि इसके सबूत हैं। महिला अपने दूसरे पति के साथ रह रही है, लेकिन पुलिस महिला को बचा रही है और उसे फंसाने की कोशिश की जा रही है। उसका इस मामले में कोई रोल नहीं है, इसलिए उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए।

वहीं, सरकारी वकील नवीन शर्मा ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में महिला की शिकायत पर रेप का केस दर्ज किया गया है। एफआईआर के मुताबिक महिला के सास-ससुर और उसके पति ने उसकी जबरन शादी कराई। महिला का आरोप है कि पिस्टल की नोक पर उसके सास-ससुर ने पैसे लेकर एक अन्य शख्स से शादी कराई और बेहोशी की हालत में उसे उक्त शख्स के साथ भेज दिया। इसके बाद उस शख्स ने उसे बांध दिया और फिर उसके साथ रेप किया। महिला की शिकायत पर रेप, धमकी और कॉमन इंटेंशन का केस दर्ज किया गया। महिला की जिस दूसरे शख्स से शादी कराई गई, वह शख्स उससे रेप के आरोप में जेल में बंद है।


http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/crime/wife-accused-husband-for-forced-marriage-with-another-man/articleshow/20594191.cms 

Father's Day: 'Harassed fathers' demand gender neutral family law

Father's Day: 'Harassed fathers' demand gender neutral family law 

The Child Rights Initiative for Shared Parenting (CRISP), a Bangalore-based NGO fighting for shared parenting in case of divorce or separation, Sunday demanded reforms in family laws -- to make them gender neutral.

"The anti-father mindset unfortunately persists in our society. In divorce and separation cases, one of the parents, out of revenge, deprives the child of the love, affection and care of the other parent," CRISP founder and president Kumar V. Jahgirdar told IANS.

He said people like him, who were seeking parenting rights and joint custody of the child, find they have no relevance on International Father's Day, which falls Sunday.

"This (single parenting) is one of the worst forms of child abuse," he said.

CRISP, with more than 2,500 members across the country, said shared parenting and joint custody of children should be implemented as a rule in divorce or separation cases.

"We demand a separate union ministry for children and we demand that the new ministry be de-linked from the present women and child development ministry. Since both have different objectives and child rights are being ignored when clubbed with the women development ministry, such a mechanism would work better," he said.

The NGO also urged the Supreme Court to define what constitutes the welfare of a child and lay down guidelines to avoid the confusion that prevails in family courts.

Delhi-based child counsellor Ekta Singh, also a CRISP member, said there is need for making it mandatory that documents pertaining to child welfare like passport and school admission forms should always have the consent of both biological parents, in case of separation.

Another member, Manpreet Bhandari, a software engineer in Bangalore, involved in a divorce case, said the custodian parent, who intentionally and consistently violates the court orders of child visitation, should be declared unfit to be a guardian.

"The custody should be give to the other parent," he said.

CRISP, with its regional chapters in Chandigarh, Chennai, Hyderabad, Mumbai, Delhi and Lucknow, has been fighting to set up special courts to deal with child custody cases.

According to the data available with CRISP, more than 20,000 divorce cases are pending in family courts in Bangalore alone. The figure was collected from family courts.

http://indiatoday.intoday.in/story/harassed-fathers-demand-gender-neutral-family-law/1/280472.html