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Monday, 17 June 2013

महिलाओं के और अधिक अनुकूल बनेगा विवाह कानून

महिलाओं के और अधिक अनुकूल बनेगा विवाह कानून  

विवाह कानूनों को महिलाओं के और अधिक अनुकूल बनाने के उद्देश्य से मंत्रियों का एक समूह जल्द ही इस बात का फैसला करेगा कि उन मामलों में जहां शादी को बचा पाना असंभव हो गया हो, क्या उनमें तलाक के मामले में अदालत पति की पैतृक संपत्ति से महिला के लिए पर्याप्त मुआवजा तय कर सकती है.
मंत्रियों का समूह हाल ही में विवाह कानून (संशोधन) विधेयक पर फैसला करने के लिए गठित किया गया था. मंत्री समूह यह भी तय करेगा कि अगर आपसी सहमति से तलाक के लिए पति-पत्नी में से कोई एक व्यक्ति अगर दूसरा ‘संयुक्त आवेदन’ दाखिल न करे, तो क्या कोर्ट तलाक देने में अपने विवेक का उपयोग कर सकता है.
दूसरी ओर, सरकार के भीतर ही इस प्रस्ताव को लेकर विरोधाभासी विचार हैं. सूत्रों ने बताया कि एक वर्ग की राय में, अगर अदालत को विवेक का उपयोग करने का अधिकार दे दिया जाए तो आपसी सहमति से तलाक का उद्देश्य पूरा नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि अगर पति-पत्नी में से कोई भी एक व्यक्ति अगर संयुक्त आवेदन देने से इनकार करता है, तो दूसरे को आपसी सहमति के बजाय अन्य आधार पर तलाक के लिए आवेदन देने की अनुमति दी जानी चाहिए.
विधेयक में पति द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में से पत्नी को हिस्सा देने का प्रावधान है. रक्षा मंत्री एके एंटनी की अगुवाई में गठित मंत्रिसमूह एक नए उपबंध 13एफ पर चर्चा कर रहा है.
इस नए प्रावधान में कहा गया है कि अगर पैतृक संपत्ति बांटी नहीं जा सकती, तो इसमें पति के हिस्से का आकलन कर पत्नी को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए. मुआवजे की राशि वह अदालत तय कर सकती है, जहां तलाक के मामले की सुनवाई हो. पिछले सप्ताह संपन्न पहली बैठक में मंत्रिसमूह ने आपसी सहमति से तलाक की खातिर संयुक्त आवेदन देने के इच्छुक दंपति के लिए छह माह तक इंतजार करने की अनिवार्यता नहीं रखने पर फैसले का जिम्मा अदालत को देने के मुद्दे पर भी चर्चा की.
सूत्रों ने बताया कि इस मुद्दे पर आम सहमति है क्योंकि इससे तलाक की प्रक्रिया में तेजी आएगी. इंतजार की अवधि पहले ही छह माह से 18 माह रखी गई है और मंत्रिसमूह अब इस पर विचार करेगा कि क्या न्यायाधीश इस अवधि को छह माह से कम कर सकता है. इस प्रावधान के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया जा रहा है.
विधेयक में तलाक के बाद पति की संपत्ति में पत्नी के अधिकार संबंधी उपबंध को लेकर पिछले माह केंद्रीय मंत्रिमंडल में मतभेद उभर आए थे और यह मामला मंत्रिसमूह को सौंपना पड़ा.
विधेयक को राज्यसभा में पेश करने के बाद अलग-अलग बदलावों के साथ तीन बार मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जा चुका है. विधेयक अब भी राज्यसभा में लंबित है.
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 तथा विशेष विवाह अधिनियम 1954 में बदलाव की मांग करने वाले संशोधन विधेयक में ‘शादी को बचाना संभव नहीं’ होने के आधार पर तलाक का विकल्प पेश किया गया है.

http://aajtak.intoday.in/story/marriage-bill-gom-to-decide-on-sufficient-compensation-for-women-1-733629.html

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